कुंडली के 12 भावों में शुक्र का फल और प्रभाव

शुक्र का फल 12 भावों में ;-

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प्रथम भाव में शुक्र का फल :- द्वादश भावों में यदि शुक्र प्रथम भाव में हो तो शुक्र दिखने में सुंदर होता हैं जातक के शरीर में आकर्षण होता हैं। यदि शुक्र के साथ राहु भी सम्मिलित हो जाए तो जातक के शरीर का आकर्षण और अधिक बढ़ जाता हैं परन्तु कई बार जातक गलत कर्म की तरफ भी आकर्षित हो जाता हैं। यदि यह शुक्र अन्य शुभ ग्रहों से युत हो तो जातक को शुभ फल और आरामदायक स्थिति मिलती हैं कम मेहनत में ही जातक जिंदगी काट लेता हैं उसको सजना संवरना अच्छा लगता है। महिला जातक के लिए शुक्र का लग्न में होना एक अच्छी स्थिति हैं। यदि यह शुक्र अस्त हो या शनि केतु से दृष्ट युत हो तो उतना अच्छा फलदाई नहीं होता नीरस सा जीवन हो सकता हैं ।

द्वितीय भाव में शुक्र का फल :- द्वादश भावों में यदि शुक्र द्वितीय भाव में हो तो जातक का चेहरा सुंदर होता हैं। कालपुरुष के अनुसार यह शुक्र का अपना घर हैं। जातक को भोजन में प्रतिदिन विशेष और विलासपूर्ण चाहिए होता हैं।जातक की वाणी शैली सुंदर होती हैं। जातक गायन कला में भी अच्छा हो सकता हैं यदि बुध का भी प्रभाव आ जाए और दोनों ही पीड़ित न हो । जातक को। ऐसा शुक्र धनवान बनाने के कई आयाम देता हैं । परिवार को जातक से विशेष लगाव होता हैं। जातक को कम मेहनत से ही धन प्राप्त होने लगता हैं ये अच्छे शुक्र की निशानी हैं । यदि शुक्र राहु स्थित है या शुक्र पे राहु की दृष्टि हैं तो भी धनवान जातक होता ही हैं परन्तु इसी स्थिति में कुटुम्ब की स्थिति अच्छी नहीं होती और जातक को नशे की आदत हो सकती हैं। यदि ऐसे शुक्र शुभ नहीं हैं शनि केतु के प्रभाव में हैं तो धन के लिए मेहनत करनी पड़ती हैं।

तृतीय भाव में शुक्र का फल :- द्वादश भावों में यदि शुक्र तृतीय भाव में हो तो जातक कलाकार होते हैं। जातक को कठिन काम करना मुश्किल होता हैं। जातक के मित्रों की संख्या अधिक होती हैं। जातक का mind creative होता हैं जातक को कुछ लिखना , कहानियां बनाना, कविताएं आदि में रुचि होती हैं। यदि बुध का भी प्रभाव हो जाएं तो जातक को धन अपने रचना और साहित्य से प्राप्त होता हैं। लेकिन पीड़ित शुक्र वासना को अधिक रखता हैं और वैवाहिक जीवन के लिए भी ठीक नहीं हैं। यदि सूर्य शुक्र साथ हो जाएं तो जीवन साथी पराक्रमी और भाग्यवान होता हैं । लेकिन शनि केतु से पीड़ित शुक्र शुक्र धन और काम सुख के मामले में अच्छा फल नहीं देता ।

चतुर्थ भाव में शुक्र का फल :– द्वादश भावों में यदि शुक्र चतुर्थ भाव में हो तो ये शुक्र जातक को ऐश्वर्यशाली बनाता हैं। कालपुरुष के अनुसार चतुर्थ भाव में शुक्र को दिग्बल प्राप्त होता हैं। चतुर्थ भाव में बैठा शुक्र जातक को लगभग सभी सुख प्रदान करता हैं । जातक भूमि भवन वाहन से परिपूर्ण होता हैं । ऐसे जातक को सुंदर पत्नी की प्राप्ति होती है। जातक को कलावान और धनवान आकर्षण युक्त बनाता हैं। और जातक को मन का सुख प्राप्त नहीं होती। यदि राहु युक्त हो जाए तो जातक को धन भूमि वाहन आदि तो प्राप्त हो ही जाती हैं परन्तु मन का सुकून प्राप्त नहीं होता । यदि अन्य ग्रहों से भी पीड़ित हो तो भी यह अपनी दशा अंतर्दशा में परिस्थिति अनुसार कुछ न कुछ सुख प्राप्त जातक को होता ही हैं।

पंचम भाव में शुक्र का फल :- द्वादश भावों में यदि शुक्र पंचम भाव में हो तो जातक को चंचल और सौंदर्य प्रेमी बनाता हैं। जातक को प्रेमी बनाता हैं।जातक को अनेक विषयों का ज्ञाता बनाता हैं । जातक को कई बार राहों में प्रेम हो जाता हैं। जातक सुंदर गुणी और धनवान होता हैं। हो सकता हैं जातक के प्रेम संबंध अधिक हो यदि राहु का प्रभाव हो जाएं तो अधिक प्रेम संबंधित होते ही हैं। यहां का शुक्र जातक को स्त्री प्रेमी बनाता हैं जातक के विवाह पश्चात बालिका संतान होने की अधिक संभावनाएं होती हैं। यदि शुक्र चन्द्रमा बुध गुरु से प्रभावित हो तो जातक को बहुत धनवान सुखी बनाता हैं। लेकिन पापी ग्रहों से पीढ़ीत शुक्र धन और संतान सुख के लिए अच्छा नहीं हैं।

षष्ठ भाव में शुक्र का फल :- द्वादश भावों में यदि शुक्र षष्ठ भाव में हो तो तो जातक के लिए शुक्र उतना अच्छा फल नहीं दे पाता । क्योंकि कालपुरुष के अनुसार शुक्र इस भाव में नीच का होता हैं। यहां शुक्र आपको पत्नी सांसारिकसुख ऐश्वर्य और संतान सुख के लिए परेशान करता हैं । पत्नी या पुत्री में से कोई बीमार रह सकती हैं। लेकिन धन यहां पर भी शुक्र दे ही देता हैं। शुक्र को यदि अन्य शुभ ग्रह देखें जैसे गुरु चंद्र तो पत्नी दान करने वाली मिलती हैं। लेकिन यदि अन्य पापी ग्रह देखें तो स्थिति ठीक नहीं होती हैं। ऐसे में जातक को धन के लिए भी बहुत मेहनत करनी पड़ती हैं। और जातक को रोग ऋण और शत्रुओं से भी सामना करना पड़ता हैं लेकिन अच्छा शुक्र सामान्य रखता हैं।

सप्तम भाव में शुक्र का फल :– द्वादश भावों में यदि शुक्र सप्तम भाव में हो तो जातक को आकर्षण शक्ति अच्छी रहती हैं। कालपुरुष के अनुसार शुक्र का यह अपना घर होता हैं। लेकिन अकेला शुक्र जो किसी से भी दृष्ट न हो दाम्पत्य जीवन के लिए अच्छा फल नहीं देता । लेकिन गुरु से दृष्ट शुक्र अच्छा जीवन साथी प्रदान करता हैं। जो सुख दुख में उसके सदैव साथ देता हैं। चन्द्रमा से दृष्ट शुक्र अनेक जीवन साथियों या फिर प्रेमियों को प्रदर्शित करता हैं। वहीं बुध से युत शुक्र सुंदर और चंचल जीवन साथी प्रदान करता हैं। लेकिन कभी कभी जीवनसाथी अन्य जगह संबंध भी बना सकता हैं। सूर्य शुक्र की युति यहां पर इगो नेचर के कारण जीवन में परेशानियां लाता हैं यदि ऐसा न हो तो जीवनसाथी बहुत ही चाहने वाला मिलता हैं । लेकिन अन्य पाप ग्रहों से दृष्ट शुक्र दाम्पत्य जीवन में परेशानी करता ही हैं।

अष्टम भाव में शुक्र का फल :- द्वादश भावों में यदि शुक्र अष्टम भाव में हो तो जातक के लिए शारीरिक समस्याएं देता है। मधुमेह जैसे रोग शुक्र द्वारा प्रदर्शित होते हैं। जातक की पत्नी बीमार रह सकती हैं। लेकिन पुत्री होने पर यह शुक्र अच्छा फल करने लगता हैं। लेकिन शुक्र यहां पर ऑकल्ट साइंस की तरफ रुझान पैदा करता ही हैं । कोई न कोई विद्या ऐसा शुक्र जातक को प्रदान करना चाहता हैं। शुभ ग्रह द्वारा दृष्ट होने पर शुक्र अच्छा देता हैं जातक को आयु गुप्त धन ससुराल में अच्छे संबंध देता हैं । लेकिन शनि केतु से शुक्र पीड़ित होने पर यह शुक्र उतना अच्छा फल नहीं करता हैं।

नवम भाव में शुक्र का फल :- द्वादश भावों में यदि शुक्र नवम भाव में हो तो जातक को धर्म के मामले में तो अच्छा फल देता हैं लेकिन पत्नी के आने के बाद दंपति को मेहनत करनी पड़ती हैं।लेकिन पिता से धन सुख आदि प्राप्त होता हैं। वहीं शुक्र स्त्री संतति देता हैं। जातक को मां भगवती की आराधना सफल बनती हैं। गुरु चन्द्रमा की दृष्टि होने पर किसी गुरु की शरण मैं आकर जीवन मैं बहुत आगे जातक जीवन में पहुंचता हैं । शुभ युक्त शुक्र अच्छा फल ही यहां पर लगभग प्रदान करता हैं लेकिन पापी ग्रहों से पीड़ित शुक्र पिता को परेशानियां देता हैं भाग्य साथ नहीं दे पाता । और जातक को धर्म कर्म मैं भी रुचि नहीं रहती हैं।

दशम भाव में शुक्र का फल :- द्वादश भावों में शुक्र यदि दशम भाव में विराजमान हो किसी भी ग्रह से दृष्ट न हो और अकेला हो तो जातक को क्षेत्र संबंधी समस्या आती हैं। दशम भाव में शुक्र बुध युत हो तो जातक को व्यापार में बहुत अच्छा कार्य प्रदान करता हैं फैशन आर्ट से संबंधित अच्छा व्यवसाय जातक कर सकता हैं। वहीं शुक्र यदि मंगल के साथ हो जातक को अत्यधिक कामुक बनाता हैं। वहीं गुरु चंद्र से युत दृष्ट शुक्र राजनीति आती कार्यों में प्रगति के अधिक अवसर देता हैं। तथा पापी ग्रहों से दृष्ट युत शुक्र कर्मक्षेत्र मैं अधिक मेहनत के पश्चाद् धनोन्नति देता हैं। इस भाव में बैठा शुक्र दिग्बल हीन होता हैं अतः इसे में जातक को संगति अच्छे लोगों के साथ रखनी चाहिए । अन्यथा शुक्र अच्छा फल नहीं दे पाता ।

एकादश भाव में शुक्र का फल :- द्वादश भावों में यदि शुक्र यदि एकादश भाव में हो तो जातक को स्त्रियों द्वारा लाभ प्रदान करता हैं । शुक्र बुध इस भाव में व्यापारिक आय प्रदर्शित करती है। शुक्र का इस भाव में होने पर गैर सरकारी कंपनियों में से आय को दिखाता हैं शुक्र का इस भाव में होना जातक को अधिक धनलाभ करवाता हैं। कई क्षेत्रों से जातक धन कमाता है। चन्द्र गुरु से दृश्य युत शुक्र अच्छे क्षेत्रों जैसे नौकरी व्यापार आदि से आय आती है। वहीं पापी ग्रहों से युत दृष्ट शुक्र भी धनलाभ करवाता हैं जैसे कहीं पैसा लगाकर जुवा सट्टा लगाकर जातक पैसा अर्जित करता हैं। एकादश भाव में लगभग सभी ग्रह अच्छे फल देते हैं।

द्वादश भाव में शुक्र का फल :- द्वादश भावों में यदि शुक्र द्वादश भाव में हो तो जातक को बहुत ही अच्छा फल प्रदान करता है। क्योंकि कालपुरुष के अनुसार शुक्र इस भाव में उच्च का होता हैं। इस भाव में बैठा शुक्र जातक को धनवान बनाता हैं जातक को रतिक्रिया काम सुख आदि प्रदान करता हैं जातक को दानी गुणी सुंदर बनाता हैं इस भाव में यदि शुक्र हो तो। यदि इस भाव में शुक्र हो तो जातक को भगवान विष्णु और लक्ष्मी माता की पूजा करनी चाहिए। यदि शुक्र इस भाव में गुरु से दृष्ट हों जाये तो जातक मोक्ष की तरफ अग्रसर होता हैं। चन्द्रमा से याद दृष्ट शुक्र कीर्तिमान धनवान बनाता हैं। वहीं केतु से युत शुक्र पत्नी सुख नही देता। तथा शनि से युत शुक्र धन के लिए अच्छा नही होता हैं। राहु से युत दृष्ट शुक्र धनवान तो बना देता हैं लेकिन कामवासना और अन्य संबंध अधिक दे सकता हैं।

भारतीय ज्योतिष शास्त्र में नव ग्रहों, बारह राशियों, और नक्षत्रों आदि के बारे में बताया गया हैं । जिसमें सूर्य, चन्द्रमा , मंगल , बुद्ध , बृहस्पति, शुक्र , शनि , राहु और केतु , इन नव ग्रहों की चर्चा आती हैं । जिनमें एक मुख्य तारा रूप में शुक्र ग्रह हैं। जिसे मुख्यत: सुख और ऐश्वर्य का कारक माना जाता हैं। शुक्र के पास राशिचक्र में वृषभ और तुला का स्वामित्व हैं। जिसमें तुला राशि शुक्र की मूल त्रिकोण राशि हैं। शुक्र बुध की कन्या राशि में नीच और बृहस्पति की मीन राशि में उच्च का होता है। शुक्र जिसे सुख ऐश्वर्य बल वीर्य आकर्षण सुंदरता संवरना आदि का कारक माना गया हैं। शुक्र के मित्र ग्रह बुध शनि राहु हैं और सम चन्द्रमा और शत्रु ग्रह मंगल सूर्य केतु हैं। शुक्र जो की एक शुभ ग्रह हैं । जिसमें राजसिक गुण पाएं जाते हैं । दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य या शुक्र ही एक ऐसे थे जिनके पास संजीवनी विद्या थी। गोचर स्थिति मैं ये सदैव सूर्य के 1 या 2 घर आगे पीछे ही रहते हैं इसलिए ये अधिकतर अस्त भी रहते हैं । जो कालपुरुष में द्वितीय और सप्तम में पड़ती हैं जिस कारण शुक्र को धन और पत्नि का कारक बताता गया हैं। मुख्यत: शुक्र को शास्त्रों में ऐश्वर्य, प्रेम, सुंदरता, आकर्षण, सुख, कला, सृजन, कामना, वासना, भोग, वीर्य, धन, पत्नी, आरोग्य,कामुकता, फैशन, डिजाइन, वाहन, समृद्धि आदि का कारक माना गया हैं।

नोट :- ये शुक्र ग्रह के सभी 12 भावों में सामान्य फल हैं । ये आपकी कुंडली अनुसार लागू भी हो सकते हैं और नहीं भी । अक्सर कुंडली में विभिन्न राशियों , नक्षत्रों , नवमांश , ग्रह दशा , देशकाल और परिस्थिति के अनुसार फलों में बदलाव आता ही हैं। शुक्र को ठीक रखने के लिए बह्मचर्य का पालन करें। स्त्रियों का सम्मान करें। तथा अपना चरित्र अच्छा रखे।

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