भारतीय ज्योतिष में शनि को न्याय का देवता और कर्म का कारक ग्रह माना गया है। यह लेख शनि ग्रह के 12 भावों में स्थित होने पर पड़ने वाले प्रभावों का विश्लेषण करता है। इसमें शनि की शुभ और अशुभ स्थितियों के आधार पर जातक के जीवन में होने वाले बदलावों, संघर्षों, परिश्रम, धन, रिश्तों और मानसिक स्थिति पर विस्तार से चर्चा की गई है। शनि के विभिन्न भावों में फल, जैसे विवाह, करियर, स्वास्थ्य, और अध्यात्म से संबंधित विशेषताओं को समझाने के साथ-साथ यह भी बताया गया है कि अन्य ग्रहों की युति, दृष्टि, और दशा के अनुसार शनि का प्रभाव कैसे बदलता है। यह लेख ज्योतिष शास्त्र में रुचि रखने वालों के लिए शनि ग्रह को गहराई से समझने का मार्गदर्शन प्रदान करता है।
शनि के विभिन्न 12 भावों में फल
- भारतीय ज्योतिष शास्त्र में नव ग्रहों, बारह राशियों, और नक्षत्रों आदि के बारे में बताया गया हैं । जिसमें सूर्य, चन्द्रमा , मंगल , बुद्ध , बृहस्पति, शुक्र , शनि , राहु और केतु , इन नव ग्रहों की चर्चा आती हैं । जिनमें एक ग्रह मुख्य शनि हैं। जिन्हें न्याय का देवता भी कहा जाता हैं । शास्त्रों में मुख्यत: शनि को कर्म का कारक बताया गया हैं । शनिदेव राशिचक्र में मकर और कुंभ राशि के स्वामी बताएं गए हैं । जिसमें कुंभ राशि शनि देव की मूल त्रिकोण राशि हैं । और यह राशि शनि देव को अधिक प्रिय हैं । शुक्र की मूल त्रिकोण राशि तुला में शनि देव उच्च के होते हैं और मंगल की मूल त्रिकोण राशि मेष में ये नीच के हो जाते हैं। शनि देव को मुख्यत: तीन पूर्ण दृष्टियां तीसरी- सातवीं- दसवीं प्राप्त हैं । इनके पास विशेष पराक्रम और कर्म की दृष्टियां हैं। शनि देव नैसर्गिक क्रूर और पाप ग्रह की श्रेणी में आते हैं । बुद्ध और शुक्र इनके मित्र , गुरु के समता , और सूर्य, चन्द्रमा, मंगल इनके शत्रु बताएं गए हैं । शनि देव ढाई वर्ष तक एक राशि में गोचर करते हैं । इसलिए ये विलंब के कारक भी माने जाते हैं । शनि देव मुख्यत: दुख, अवसाद, विच्छेद, अध्यात्म, वैराग्य, कर्म, अंधकार, देर, संघर्ष, पराक्रम, आदि के कारक माने जाते हैं । शनि देव को न्याय का देवता भी कहा जाता हैं। अतः शनि ग्रह न्याय प्रेमी हैं। आइए अब जानते हैं शनि के विभिन्न 12 भावों में फल-
- शनि प्रथम भाव में
- शनि ग्रह यदि कुंडली के 12 भावों में यदि प्रथम भाव या लग्न भाव में हो तो जातक को जीवन में बहुत संघर्ष करना पड़ता हैं। संघर्ष के अलावा जातक के पास कोई और तरकीब नहीं होती हैं । लग्न में बैठा जातक को वैरागी बना सकता हैं । ऐसे जातक के सभी कार्य विलंब से होते हैं।जातक चाहकर भी अपना काम सही समय पर नहीं कर पाता । कई बार जातक को ऐसा शनि आलसी बना देता हैं। जातक को एकांतवास पसंद होता हैं । जातक का शनि यदि शुभ हो तो जातक की उन्नति धीरे धीरे होती हैं और ऐसी उन्नति अधिक देर तक जातक का साथ देती रहती हैं। जातक को सफलता थोड़ी देर से मिलती हैं। जातक न्यायप्रिय आध्यात्मिक होता हैं तथा जातक समय से पहले ही जिम्मेदारियां समझने लगता हैं। यदि शुभ न हुआ तो जातक कलुषित मानसिकता का होता हैं या जातक को शारीरिक समस्याएं रहती हैं।
- शनि द्वितीय भाव में
- शनि ग्रह यदि कुंडली के 12 भावों में यदि द्वितीय भाव में बैठे हो तो जातक जातक धीरे धीरे बोलने वाला और विचारों को अपने अंदर छुपाने वाला होता हैं। जातक को धन संपति और पुश्तैनी संपति देर से मिल सकती हैं। जातक को धन और लाभ कमाने के लिए अधिक मेहनत करनी पड़ सकती हैं। जातक को मेहनत अनुसार ही धन की प्राप्ति होती हैं। जातक को गुप्त धन की प्राप्ति हो सकती हैं। यदि यह शनि अच्छा हुआ तो जातक को देर सवेर ही सही धनवान जरूर बनाएगा लेकिन अशुभ हुआ तो जातक के परिवार से अच्छी नहीं बनती और परिवार में एक दूसरे के लिए बुरे विचार पैदा होते रहते हैं । ऐसी स्थिति में यदि जातक नशा करे तो जातक की बर्बादी और उसके परिवार को कष्ट होता हैं।
- शनि तृतीय भाव में
- शनि ग्रह यदि कुंडली के 12 भावों मैं यदि तृतीय भाव में हो तो जातक पराक्रमी और निडर स्वभाव का होता हैं। जातक की बहने अधिक हो सकती हैं। जातक मेहनत करने से डरता तो नहीं हैं । आलस्य भी उसे कई बार घेर लेता हैं। जातक को अपने मित्रों और पड़ोसियों से लाभ प्राप्त होता हैं। पूर्वार्ध में भाई बहनों से अच्छी रहती हैं परन्तु धीरे धीरे बिना किसी कारणवश उनमें अवसाद पैदा होता रहता हैं। वैसे अधिकतर यहां शनि अच्छे ही फल करता हैं। यदि शनि अच्छा हुआ तो जातक के लिए मेहनत द्वारा ही अच्छी खासी प्राप्ति होती हैं जातक को गुणवान संतानों की प्राप्ति होती हैं । यदि अशुभ हुआ तो जातक कुसंगती का शिकार और अन्य बड़े लोगों द्वारा पीड़ित होता रहता हैं
- शनि चतुर्थ भाव में
- शनि ग्रह यदि कुंडली के बारह भावों में यदि चतुर्थ भाव में हो तो जातक को कम उम्र में ही वैरागी बना सकता हैं। ऐसे जातक का अक्सर पुराना घर या वाहन देखा गया हैं । ऐसे जातक को चिंता और अवसाद किसी न किसी चीज का सताता ही रहता हैं। जातक की माता को वायु संबंधित या अन्य बात जनित रोग हो सकते हैं । यदि ये शनि शुभ होगा तो जातक को प्रतिष्ठित व्यवसायिक और उसे लकड़ियों का कारोबारी बना सकता हैं। और यदि ये शनि अच्छा नहीं हुआ तो घर को अच्छा माहौल नहीं देता हैं । परेशानियां और बीमारियां लंबे समय तक लगी रहती हैं। और घर में सीलन जैसी समस्याएं होती रहती हैं। और मन को सदैव खिन्न जैसा बनाएं रखता हैं।
- शनि पंचम भाव में
- शनि ग्रह यदि कुंडली के बारह भावों में यदि पंचम भाव में हो तो जातक समय से पहले ही अपने माता पिता की जिम्मेदारियों को समझने लगता हैं। जातक न्यायप्रिय विवेकी गुणी और चतुर होता हैं। जातक यदि प्रेम विवाह करे तो जातक के विवाह पश्चात जीवन में बहुत बदलाव आते हैं। जातक गुप्त ज्ञान पाने वाला । गुप्त वेद शास्त्रों को पढ़ने वाला और बड़ों जैसी बातें करने वाला होता हैं । यदि यहां जातक का शनि शुभ हुआ तो जातक को जीवनकाल में बहुत अधिक आगे ले जाता ही हैं जातक को पितरों का आशीर्वाद भी प्राप्त होता हैं और अच्छी संताने देता हैं । यदि यह अशुभ हुआ तो जातक को संतान होने में समस्याएं होती हैं। जातक का वैवाहिक जीवन भी अच्छा नहीं होता।
- शनि षष्ठ भाव में
- शनि ग्रह यदि कुंडली के बारह भावों में यदि षष्ठ भाव में हो तो जातक जातक को शत्रुओं का बोध सही समय पर नहीं होता हैं । जातक के शत्रु नष्ट हो जाते हैं । जातक थोड़ा देर से शत्रुओं पर प्रतिक्रिया देता हैं। ऐसे जातक को ऋण नहीं लेना चाहिए जातक को ऋण चुकाने में परेशानियां आ सकती हैं । ऐसा शनि प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए भी अच्छा माना गया हैं । क्योंकि जातक परीक्षा के लिए पहले ही सचेत होकर लंबी अवधि तक तैयारियां जारी रखता हैं। यदि यह शनि शुभ होगा तो जातक शत्रुओं पर भारी पड़ेगा यदि शुभ न हो तो जातक को दीर्घकालिक रोग सता सकते हैं।
- शनि सप्तम भाव में
- शनि ग्रह यदि कुंडली के बारह भावों में यदि सप्तम भाव में हो तो जातक का विवाह विलंब से होता हैं । जातक को पत्नी कम सुन्दर प्राप्त होती हैं लेकिन मेहनती और अधिक सूझ-बुझ और अनुभवी विवेकयुक्त न्यायप्रेमी होती हैं। जातक की पत्नी उम्र में या तो बड़ी होगा या फिर वह उम्र से अधिक बड़ी दिखेगी । इस भाव में बैठा शनि जातक को बड़ा व्यापारी और उसके पास काम अधिक हो सकते हैं। इस भाव में शनि को दिग्बल प्राप्त होता हैं और कालपुरुष में शनि इस भाव में उच्च का होता हैं। अतः अधिकतर शनि यहां शुभ फल देता हैं। यदि शुभ शनि हो तो जातक का उतरार्द्ध अच्छा होता हैं जातक को विवाह पश्चाद् धनालाभ और उन्नति प्राप्त होती हैं । यदि अशुभ हो तो पत्नी बीमार रहती हैं पत्नी को दीर्घकालिक रोग हो सकते हैं।
- शनि अष्टम भाव में
- शनि ग्रह यदि कुंडली के 12 भावों में यदि अष्टम भाव में हो तो जातक की आयु लंबी होती है। शनि देव को अष्टम भाव का कारक भी माना जाता हैं। यहां शनि देव विशिष्ट कारक होते हैं। शनि देव यहां बैठकर जातक को कोई न कोई गुप्त विद्या प्रदान करते हैं। जातक को गुप्त धन या फिर पुश्तैनी धन की प्राप्ति हो सकती हैं। कई बार जातक को गुप्त रोग भी सता सकता हैं। अधिकतर यहां बैठे शनि देव जातक के कार्यों में अकारण ही विलंब करते हैं । और जातक को अथक प्रयासों के बाद ही सफलता प्राप्त होती हैं । और जातक धीरे धीरे उन्नति करता हैं। अगर शनि यहां शुभ हुआ तो जातक को दीर्घायु और गुप्त ज्ञानी और अनुभवी बनाते हैं। जातक आध्यात्मिक होता हैं अन्यथा अशुभ होने पर जातक को रोग के साथ दीर्घायु देते हैं।
- शनि नवम भाव में
- शनि ग्रह यदि कुंडली के बारह भावों में यदि नवम भाव में विराजमान हो तो जातक को विरक्ति वाले विचार अधिक आते हैं। जातक आध्यात्मिक न्यायप्रेमी होता हैं। जातक धर्म को भी मानता हैं और जातक धर्म के लिए लड़ता भी हैं। जातक को धार्मिक यात्राएं करना अधिक अच्छा लगता हैं। जातक को एकांत वास करना और अपने में चित्त को लगाना उसे अद्भुत एहसास प्राप्त करवा सकता हैं । जातक को भाग्य का साथ देर से प्राप्त होता हैं। यदि जातक का शनि शुभ हुआ तो जातक को उच्च पद प्राप्त करवा सकता हैं। जातक का भाग्योदय 36 वर्षों बाद होता हैं। जातक को देर से ही सही लेकिन उन्नति जरूर करवाता हैं। यदि अशुभ हुआ तो जातक को पिता संबंधित परेशानियां आती हैं। या पिता रोगी रहेंगे या फिर जातक के पिता से विचार नहीं मिलेंगे ।
- शनि दशम भाव में
- शनि ग्रह यदि कुंडली के बारह भावों में यदि दशम भाव में हो तो जातक कर्मों पर विश्वास करता हुआ जातक कर्मों को करता रहता हैं। शनि देव कालपुरुष के अनुसार दशम भाव के स्वामी माने जाते हैं और शनिदेव को कर्म का कारक भी माना जाता हैं। दशम में बैठा शनि जातक को दूसरों की सेवा करने के लिए भी प्रेरित करता हैं। और जातक को व्यावहारिक न्यायी बनाता हैं। यहां का शनि जातक को राजनीति प्रशासन में भी ले जा सकता हैं। अक्सर ऐसे जातक को वह कार्य पसंद हो जहां सेवाभाव विद्यमान हो। यदि यहां का शनि शुभ हो तो जातक उन्नति करता हैं और अपना वर्चस्व स्थापित करता हैं। यहां एक बात और कि अच्छा शनि वाला जातक चाहे कितना भी बड़ा आदमी हो लेकिन वह अन्य लोगों से सरल व्यवहार करता हैं और जातक डाउन टू अर्थ होता हैं तथा अशुभ शनि प्रमादी, आलस्ययुक्त और व्यसनी होता हैं ।
- शनि एकादश भाव में
- शनि ग्रह यदि कुंडली के बारह भावों में यदि एकादश भाव में हो तो जातक को विभिन्न क्षेत्रों से धन लाभ देता हैं। कालपुरुष के अनुसार शनि यहां का स्वामी होता हैं इसलिएयहां का शनि शुभ माना जाता हैं। यहां पर बैठा शनि जातक के व्यवसाय में वृद्धि करता हैं। जातक के मित्रों की संख्या अधिक नहीं होती पर जो भी मित्र होते हैं जातक को लाभ ही प्रदान करते हैं और सही समय पर जातक की सहायता करते हैं। यदि यहां का शनि शुभ हुआ तो जातक की समृद्ध बनाता हैं । जातक को पूर्वार्ध में अधिक मेहनत करनी पड़ सकती हैं लेकिन उतरार्द्ध अच्छा होता ही हैं। जातक को आयु से भी लाभ प्राप्त होता हैं और जातक को गुप्त ज्ञान प्राप्त होता हैं। यदि अशुभ हुआ तो जातक के मित्र जातक का उपयोग करते हैं । और जातक को सामाजिक हानि प्राप्त होती हैं।
- शनि द्वादश भाव में
- शनि ग्रह यदि कुंडली के बार12 भावों में यदि द्वादश भाव में हुआ तो इस संसार से वैराग्य उत्पन्न कर देता हैं। द्वादश भाव का शनि हर्ष बलि माना जाता हैं। यहां का शनि जातक की आर्थिक उन्नति के लिए अच्छा नहीं होता हैं । इसलिए जातक को आध्यात्मिक विचार अधिक आने लगते हैं। यहां का शनि जातक को धन एकत्रित नहीं करने देता और धन को सही जगह भी नहीं लगाता । यहां का शनि यदि शुभ हो तो जातक को विदेश जरूर ले जा सकता हैं। यदि आप धनवान हो तो गुप्त दान जरूर देना चाहिए । ऐसा करना आपके लिए फायदेमंद रहेगा । यदि यह अशुभ हुआ तो धन का रोगों पर अधिक खर्च करवाता हैं और अस्पताल में लंबे समय तक रहना पड़ सकता हैं।
- नोट:- ये शनि के कुंडली में द्वादश भावों में विराजमान होने के सामान्य फल हैं। विशेषत: अन्य ग्रहों की स्थिति, राशि, युति – दृष्टि, दशा , और नवमांश – नक्षत्रों आदि के आधार पर ग्रहों के फलों में बदलाव आते ही हैं।
नमो नम: । मैं स्वयं एक ज्योतिष विषय का जिज्ञासु हूं । इस विषय में मैं निरंतर जानने की चेष्टा करता रहता हूं। मुझे ज्योतिष में बचपन से ही शौक था और मैने इसे गहराई और अनुभवों से जांचा है जिससे मेरे दैनिक जीवन में बड़े लाभ हुए है। वर्तमान में मैं ज्योतिष की सूक्ष्म बातों ओर सिद्धांतों को जानने का प्रयास कर रहा हु। साथ ही जिज्ञासुओं के लिए अपने ज्योतिष के लेख लिख रहा हूं।