राहु और केतु के रहस्य
भारतीय ज्योतिष शास्त्र में नव ग्रहों, बारह राशियों, और नक्षत्रों आदि के बारे में बताया गया हैं । जिसमें सूर्य, चन्द्रमा , मंगल , बुद्ध , बृहस्पति, शुक्र , शनि , राहु और केतु , इन नव ग्रहों की चर्चा आती हैं । जिसमें राहु और केतु जो छाया ग्रह हैं जो सदैव वक्री रहते हैं और वक्रत्व में ही विचरण करते हैं। ये दोनों ग्रह अपने से ठीक 180° पर बैठते हैं। इस दोनों के कारकत्व बिल्कुल अलग हैं। जैसे राहु चीजों को देख पाता हैं आकर्षित होता हैं और दिखावा करके आकर्षण पैदा भी कर लेता हैं। लेकिन वहीं केतु दृष्ट नहीं कर पाता लेकिन वह महसूस कर पाता हैं। लेकिन केतु आकर्षक नहीं होता वह विच्छेद करता हैं। केतु दिखावा नहीं करता वह पाकर भी संसाधनों को छोड़ना जानता हैं। इसलिए राहु शुक्र के पास जाकर अच्छा महसूस करता हैं जो कि ऐश्वर्य सुख भोग का कारक हैं क्योंकि शुक्र दैत्यों के गुरु भी हैं और वहीं केतु बृहस्पति के पास आकर खुश होते हैं जो धर्म आध्यात्म शांति को प्रदर्शित करते हैं जो देवों के गुरु हैं ।
राहु और केतु एक सामान्य कारक:-
सर्वप्रथम राहु केतु को भारतीय ज्योतिष के अनुसार छाया ग्रह बताया गया हैं । अर्थात् ऐसे छाया ग्रह जिनकी कोई भी आकृति नहीं हैं । ना ही कोई भौतिक आकार । अर्थात् ये अनिश्चित भी हो सकता हैं और अतिसूक्ष्म भी । सौरमंडल में सूर्य की कक्षा और चन्द्रमा की कक्षा जिस बिंदु पर मिलती हैं वहीं बिंदु राहु कहलाता हैं या यह एक नई प्रकार की अत्यधिक ऊर्जा राहु बनती हैं ऐसा भी कहा जा सकता हैं ठीक इसके विपरीत 180° पर केतु की स्थिति होती हैं। जब राहु केतु का कोई आकार हैं ही नहीं तो इसे जानना अत्यधिक कठिन होता हैं इस लिए राहु को भ्रम और माया का कारक बताया हैं। यदि सामान्यतः कहा जाए तो तो ” मैं रा-हु ” रा अर्थात् मैं ही राम भी हूं मैं ही रावण भी हूं। राहु एक विशाल अनिश्चित ऊर्जा हैं। जो एक दम से स्थिति को बदलने में विश्वास रखता हैं। राहु एक ऐसा ग्रह हैं जो मनुष्य को रातों रात ही ऊंचाइयां प्रदान कर सकता हैं और रातों रात ही उन ऊंचाइयों को छीन भी सकता हैं। वहीं केतु एक ऐसी ऊर्जा हैं जो किसी को जानता ही नहीं उसे किसी से भी कोई मतलब हैं ही नहीं कि कोई उसे जाने या नहीं उसे कोई चिंता नहीं। केतु किसी को पाकर भी छोड़ना चाहता हैं उसे छोड़ने में आसानी होती हैं। लेकिन वह किसी भी चीज़ को पकड़ के नहीं रखता । उसके पास इंद्रियां नहीं हैं कुछ भी जानने के लिए क्योंकि वह धड़ भाग ही हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार राहु को मुख और केतु को धड़ का भाग बताया गया हैं। शरीर का मुख भाग जहां जहां हमारी नाक कान आदि इंद्रियां होती हैं इन इंद्रियों पे राहु का पूरा अधिकार होता हैं हो शेष धड़ भाग केतु का होता हैं। राहु का पूरा प्रभाव इंद्रियों पे होने के कारण तथा धड़ न होने के कारण इंद्रियां तो सदैव इच्छा करती रहती हैं लेकिन कभी तृप्त नहीं होती। इसीलिए राहु की अतृप्त इच्छाएं सदैव बड़ी ही होती हैं जब वह पूरी हो जाती हैं तो उससे और बड़ी की चाहत यह करने लगता हैं। इसीलिए राहु को किसी भी चीज़ के लिए पागलपन का कारक भी बताया गया हैं । लेकिन इसे लगातार काम करना पसन्द नहीं हैं इसे short cut पसंद हैं । इसीलिए यह अनैतिक कार्य करने से भी डरता नहीं हैं । यह किसी भी काम को करने के लिए साम दाम दंड भेद चारों को अपनाता हैं। राहु आडंबर और दिखावा भी करता हैं। वहीं केतु धड़ भाग हैं जो जीवन कर्म करने वे विश्वास रखता हैं उसके पास इंद्रियां नहीं हैं केवल निचला शरीर हैं। जिसका केवल उपयोग किया जाता हैं इंद्रियों के द्वारा । इसलिए केतु को आध्यात्म मोक्ष का कारक कहा गया हैं केतु बहुत रहस्यात्मक ऊर्जा हैं। जिसे कोई जान नहीं पाता न ही उसे कोई भांप पाता हैं। क्योंकि ये महसूस करता है देख नहीं पाता ये बहुत गूढ़ हैं। केतु ऊंचाई हैं इसलिए झंडा का कारक भी केतु हैं वहीं राहु खाई हैं और राहु नालियों का कारक भी हैं। इसलिए राहु के बुरे प्रभाव से बचे और केतु में आने का भी प्रयास करते रहे।
राहु से बचने के उपाय-
1: सर्वप्रथम अपना आहार शुद्ध रखें । बाहर का न ही खाएं तो अच्छा हैं । जंक फूड का सेवन न करें ।
2: पानी अधिक से अधिक पिए । और अपने विचारों को शुद्ध करें और नेगेटिविटी आदि से दूर रहे ।
3: इलेक्ट्रॉनिक आइटम्स का उपयोग सीमित ही करें । जब जरूरत हो तभी मोबाइल आदि का इस्तेमाल करें । फोन आदि नेटवर्क माध्यम से ज्ञान मोटिवेशन आदि ही प्राप्त करें जो आपके काम आ सके ।
4: अपने आपको सात्विक रखें । सुबह जल्दी उठें और शाम को जल्दी ही सो जाएं । तथापुजा पाठ भजन कीर्तन आदि में भी अपना थोड़ा समय दे ।
5: अपनी आदतों को भी सुधारें और उनमें परिवर्तन लाने की कोशिश करें । जैसे कि देर से नहाना , खाना खाते समय फोन टेलीविजन आदि देखना इत्यादि ।
6: ग़लत संगति नशा, जुआ, सट्टा, शरारत आदि से दूर रहे । और अपने आप पे किसी भी बुरी चीज़ की लत हावी न होने दें । सनकीपन, वहम, और शक करना छोड़ दे ।
7: समय को मैनेज करना सीखें और निरन्तर अपने आप को नया बनाएं । अपने आप को अच्छे way में update करते रहें ।
8: अधिक सोचने से बचें। सोचने की बजाय अपने काम पर ज़्यादा ध्यान दे। अपने निर्णय स्वयं कम ही ले कोई विशिष्ठ गुरु या बड़ों की देखरेख में ही निर्णय ले और कार्य करें।
9: जब तक कार्य पूर्ण ना हो जाएं उसे अपने तक ही सीमित रखें । अंधेरे से दूर रहने की कोशिश करें और प्रकाश मैं अधिक से अधिक आएं।
10: अपने लिए प्रतिदिन कुछ न कुछ अच्छा करते रहे और आगे बड़े। शिव और दुर्गा मां की पूजा करना श्रेष्ठ हैं ।
नमो नम: । मैं स्वयं एक ज्योतिष विषय का जिज्ञासु हूं । इस विषय में मैं निरंतर जानने की चेष्टा करता रहता हूं। मुझे ज्योतिष में बचपन से ही शौक था और मैने इसे गहराई और अनुभवों से जांचा है जिससे मेरे दैनिक जीवन में बड़े लाभ हुए है। वर्तमान में मैं ज्योतिष की सूक्ष्म बातों ओर सिद्धांतों को जानने का प्रयास कर रहा हु। साथ ही जिज्ञासुओं के लिए अपने ज्योतिष के लेख लिख रहा हूं।