द्वादश भावों में मंगल का फल – वैदिक ज्योतिष के अनुसार

द्वादश भावों में मंगल

भारतीय ज्योतिष शास्त्र में नव ग्रहों, बारह राशियों, और नक्षत्रों आदि के बारे में बताया गया हैं । जिसमें सूर्य, चन्द्रमा , मंगल , बुध , बृहस्पति, शुक्र , शनि , राहु और केतु , इन नव ग्रहों की चर्चा आती हैं । जिसमें मंगल ग्रह एक मुख्य ग्रह हैं। जिन्हें सेनापति के रूप में शास्त्रों में वर्णित किया गया हैं। राशिचक्र में मंगल के पास मेष और वृश्चिक इन दो राशियों का स्वामित्व हैं। जिसमें मेष राशि मंगल को अधिक प्रिय हैं। इसलिए मेष मंगल की मूल त्रिकोण राशि हैं। मंगल शनि की राशि मकर में उच्च के होते हैं और चन्द्रमा की राशि कर्क में नीच के होते हैं। मंगल को पराक्रम का कारक माना जाता हैं। मंगल तामसिक ग्रह रक्तवर्णीय लाल रंग का यह ग्रह तेजस्व रूप में होता हैं। मंगल क्षत्रिय वर्ण और क्रूर पापग्रह की श्रेणी में यह आता हैं। सूर्य चन्द्रमा बृहस्पति , मंगल के मित्र ग्रह हैं तथा शनि शुक्र सम ग्रह और बुध इसका शत्रु ग्रह हैं। मंगल का 45 दिनों तक लगभग एक राशि में भोगकाल होता हैं। मंगल पराक्रम, भाई, मित्र, सैनिक, पुलिस, हिंसा, लड़ाई-झगड़ा, दूसरों पर हावी होना, अपने दम पर सब कुछ हासिल करना, जिद अहंकार, किसी की न सुनना, किसी भी स्थिति मैं सदैव लड़ना, आदि का कारक होता हैं। मंगल को शारीरिक ऊर्जा, बल और रक्त कारक भी माना जाता हैं। व्यायाम करना , जिम आदि में ज्वाइन करना, कसरत, अधिक पैदल चलना, और अपने शरीर को चुस्त फिट रखना ये सभी मंगल को मजबूत करता हैं।

आइए अब जानते हैं मंगल का द्वादश भावों में फल :-

मंगल प्रथम भाव :- द्वादश भावों में मंगल यदि प्रथम भाव में हो तो जातक पराक्रमी होता हैं। कालपुरुष के अनुसार पहला भाव मंगल का अपना घर हैं। जातक को जल्दी जल्दी काम करना पसंद होता हैं। मंगल पहले घर में बैठकर जातक को मेहनती क्रोधी उपद्रवी तेजस्वी स्वभाव का बनाता हैं। जातक अब खाली नहीं बैठना चाहता वह कुछ न कुछ करता ही रहता हैं। यदि मंगल पे पाप ग्रहों की दृष्टि युति हो तो जातक बहुत क्रोधी और उपद्रव मचाने वाला होता हैं कई बार जातक अपने काम खुद ही बिगाड़ देता हैं। जातक लड़ाई झगड़ा यूंही करता रहता हैं। शुभ दृष्टि होने पर जातक भगवान का उपासक होता हैं । जातक आत्मविश्वासी होता हैं और अपनी ऊर्जा और बल का जातक सदुपयोग करता हैं।

मंगल द्वितीय भाव:- द्वादश भावों में मंगल यदि द्वितीय भाव में हो तो जातक धन कमाने के लिए सदैव आतुर होता हैं। जातक के चेहरे में लालिमा क्रोध और तेज दिखाई देता हैं। जातक की वाणी कर्कश और तेज होती हैं। जातक को खाने मैं अधिक तीखा पसंद हो सकता हैं। जातक अपने परिवार से लड़ता हैं या फिर अपने परिवार के लिए लड़ता रहता हैं। जातक की पत्नी कई बार जातक की नहीं सुनती हैं। यदि यहां अशुभ दृष्ट या युत हो तो जातक को दांतों से संबंधित समस्या रहती हैं जातक गली गलौच करने में भी संकोच नहीं करता। जातक परिवार बारे पे भी क्रोध करता हैं। यदि मंगल पे शुभ दृष्टि हो तो जातक को भाषण बाजी करना अच्छा लगता हैं । जातक को मीठा खाना पसंद होता हैं । कुटुंब से भी जातक के अच्छे संबंध होते हैं।

मंगल तृतीय भाव :- द्वादश भावों में मंगल यदि तृतीय भाव में हो तो जातक निडर स्वभाव का होता हैं जातक जीवन में बहुत रिस्क लेता हैं चाहे क्षेत्र अच्छा हो या बुरा। जातक के मित्र बहुत होते हैं। जातक अपने भाइयों के लिए सहायक होता हैं। और समय समय पर उनकी सहायता करता है। जातक अपने बल पर सब कुछ हासिल करन चाहता हैं। यदि शुभ दृष्ट युत हो तो जातक सही दिशा में पराक्रम करके आगे बढ़ता हैं। और गलत कार्य जीवन में नहीं करता हैं। यदि अशुभ युत दृष्ट हो तो जातक को जीवन में बहुत भटकाव मिलता हैं। जातक गलत दिशा में रिस्क लेकर बाद में पाश्चाताप करता हैं। जातक के मित्र ही जातक को गलत दिशा देते है । इसलिए मित्रो से जातक को सावधान रहना चाहिए।

मंगल चतुर्थ भाव :- द्वादश भावों में मंगल यदि चतुर्थ भाव मैं हो जो जातक को मानसिक चिंता रहती ही हैं। क्योंकि कालपुरुष के अनुसार जातक चतुर्थ भाव में नीच का होता हैं। जातक घर में उपद्रव मचाता रहता हैं। जातक चिंतित रहता हैं कुछ न कुछ विचार उसके मन मैं आए रहते हैं। यदि यहां शनि से दृष्ट हो तो जातक को भूमि सुख की प्राप्ति हो सकती हैं। परन्तु यदि मंगल राहु केतु से दृष्ट हो जाए तो जातक के घर का माहौल सदैव लड़ाई झगड़े में बीतता हैं और या तो माता का स्वभाव गरम होता हैं या भी माता स्वास्थ्यहीन होते हैं।यदि मंगल शुभ ग्रह से दृष्ट हो जाए तो जातक की माता का स्वास्थ्य ठीक रह सकता हैं और घर अच्छा और सुंदर होता हैं । शुक्र से संबंधित मंगल दो घर या वाहन प्रदान करता हैं।

मंगल पंचम भाव:- द्वादश भावों में मंगल यदि पंचम भाव में हो तो जातक को पुत्र संतान के योग अधिक होते हैं। जातक वाकपटु होता हैं। जातक को किसी भी घटना के पीछे कुछ न कुछ लॉजिक चाहिए होता हैं। जातक प्रेम संबंध भी जल्दी ही बना लेता हैं परन्तु उसमें आक्रोश भी होता रहता है। और जातक प्रेम में किसी भी हद तक जाने में तैयार हो जाता हैं। जातक पढ़ाई किसी के दबाव में आकर नहीं करता लेकिन जब करता हैं तो अच्छे से करता हैं। यदि मंगल में गुरु या सूर्य की दृष्टि हो तो संतान तेजस्वी पैदा होती हैं । जो समाज को अलग ही अच्छी दिशा प्रदान कर सकती हैं। और यदि अशुभ दृष्ट मंगल हो तो पहली संतान खराब निकल सकती हैं । और पेट में पित्त संबंधित समस्या रहती हैं। यदि शनि से संबंधित बने तो जातक को तकनीकी क्षेत्र का ज्ञान हो सकता हैं।

मंगल षष्ठ भाव :- द्वादश भावों में मंगल यदि षष्ठ भाव में हैं तो जातक शत्रुओं के लिए सामने सामने घातक सिद्ध होता हैं जातक शत्रु को मुंह के सामने खत्म करने की क्षमता रखता हैं। और जातक निडर स्वभाव का होता हैं और डरता भी किसी से नहीं हैं। जातक रोगों ऋणों का भी समूल विनाश करता हैं। जातक के सामने बहुत हो लेकिन खुद अकेला भी उन पर भारी पड़ सकता हैं अगर राहु का साथ भी मिल जाए तो और ऐसे में तो कोट कचहरी का सामना भी करना पड़ सकता हैं। मंगल को यदि अशुभ ग्रह देखे युत हो तो जातक को जीवन में बहुत लड़ाई झगड़ा करना पड़ सकता हैं यदि शुभ दृष्टि हो तो जातक को लड़ाई झगड़े में बहुत नुकसान नहीं होता है ।

मंगल सप्तम भाव:- द्वादश भावों में मंगल यदि सप्तम भाव में हो तो जातक का विवाह लड़ाई झगड़े में ही बीतता हैं। जातक का पार्टनर पहले तो ठीक होते हैं लेकिन जैसे जैसे विवाह नजदीक आता हैं लड़ाई उतनी ही बढ़ती जाती हैं। और विवाह पश्चात दंपति जोड़ी सुबह लड़ाई करती हैं और शाम को दोनों एक दूसरे के साथ घुल मिल जाते हैं। ऐसे जातक कामी बहुत होते हैं । जातक अपने जीवनसाथी के लिए लड़ते भी बहुत हैं। यदि ये पाप ग्रह से युत दृष्ट हो तो जातक को पार्टनरशिप में नुकसान होता हैं और दाम्पत्य जीवन भी सुखी नहीं होता हैं। तलाक आदि के योग भी बन सकते हैं। यदि शुभ दृष्टि युति हो तो जीवन सुंदर और सूखी बीतता हैं।

मंगल अष्टम भाव :- द्वादश भावों में मंगल यदि अष्टम भाव में हो तो जातक की ससुराल वालों से ठीक नहीं होती हैं। जातक को अग्नि चोट चपेट और ऊंचाई वाले क्षेत्रों से खतरा होता हैं। यह कालपुरुष के अनुसार मंगल का अपना घर हैं जो नाश को प्रदर्शित करता हैं। जातक को भाइयों से नुकसान प्राप्त होता हैं। यदि शुभ दृष्ट हो तो जातक को शारीरिक समस्याएं होने पर ठीक हो जाती हैं। जातक को गुप्त विधाएं ज्ञात हो सकती हैं। यदि अशुभ दृष्ट हो तो जातक को मृत्यु का भय होता हैं। चोट रक्त सिर और गुप्तांगों से संबंधित समस्या रहती हैं । और जातक को जीवन में बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ सकता हैं और जातक को जीवन में बहुत परेशानी आती हैं।

मंगल नवम भाव:- द्वादश भावों में मंगल यदि नवम भाव में हो तो जातक धार्मिक होता हैं। जातक को धर्म कर्म में रुचि होती हैं। और जातक सत्य के लिए लड़ता रहता हैं। ऐसा जातक जितना अधिक धर्म कर्म करेगा उतना उसके भाइयों को लाभ मिलता जाता हैं। जातक पिता के विचारों पर अम्ल करता रहता हैं। यदि मंगल को गुरु की दृष्टि प्राप्त हो तो जातक बजरंग बली का भक्त हो सकता हैं और युति होने पर जातक को गुरु की प्राप्ति होती है जिससे जातक जीवन मैं बहुत प्रगति करता हैं जातक धार्मिक प्रवचन करते हुए भी पाएं जाते हैं। जातक के पिता बहुत सामाजिक और गुणनशील होते हैं। सूर्य की दृष्टि होने पर शिव भक्त होते हैं । अन्य शुभ ग्रहों से युति दृष्टि भाग्य को बढ़ाती हैं । पाप युति धर्म में लड़ाई और धर्म को न मानना जैसे विचार जातक को बना सकता हैं जातक की पिता से संबंधों में संघर्ष होता हैं।

मंगल दशम भाव:- द्वादश भावों में मंगल यदि दशम भाव में हो तो जातक जीवन में उन्नति करने के लिए सदैव प्रयत्न करता हैं। मंगल को इस भाव में दिग्बल प्राप्त होता है। कालपुरुष के अनुसार मंगल यहां उच्च का होता हैं। यह कर्म का घर होता हैं यह मंगल यहां कर्म करता रहता हैं। लेकिन कई बार मंगल यहां पर मंगल क्षेत्र से संबंधित समस्या देता हैं जातक को पता ही नहीं होता कि जातक को आखिरकार क्या कार्य करना हैं। बस जातक कर्मों के लिए प्रयत्नरत रहता हैं लेकिन यदि ये ही मंगल शुभ दृष्ट या युत हो जाए और शुभ हो जाएं तो ये आपके कार्यक्षेत्र में बहुत प्रगति देने वाला होता हैं ऐसा जातक राजनीति में भी कार्य करता हैं प्रशासन में भी जातक की अच्छी पहचान होती हैं। और जातक खुद भी उच्च पदों पर प्रशासित हो सकता हैं । ऐसा मंगल जातक को उन्नति के बहुत अवसर प्रदान करता हैं। अशुभ ग्रहों से युत मंगल भी इस भाव में कई बार परिणाम सामान्यतः अच्छे ही देता हैं।

मंगल एकादश भाव:- द्वादश भावों में मंगल यदि एकादश भाव में हो तो जातक को लाभ के बहुत आयाम प्राप्त होते हैं। जो जातक के खुद के आयाम होते हैं। जातक के बहुत से मित्र होते हैं। जातक को मित्रों से बहुत लाभ प्राप्त होता हैं। जातक को साहस से ही लाभ प्राप्त होता हैं जातक यदि निर्धन हो तो भी जातक को ऐसा मंगल धनी बनाने में सक्षम है। एकादश में सभी ग्रह अच्छे फल देते हैं अगर मंगल शुभ ग्रहों से युत हैं तो धन का मार्ग स्थान सुगम होता हैं। अन्य क्रूर ग्रहों से युत होने पर धन अच्छे मार्गों से नहीं आता हैं। लेकिन मंगल धन के प्रति लालसा अत्यधिक देता हैं एकादश भाव में । एकादश भाव का मंगल जातक के चाचा को चतुर बनाता हैं ।

मंगल द्वादश भाव :- द्वादश भावों में मंगल यदि द्वादश भावों में हो तो जातक को कोर्ट केस संबंधित हानि देता है। जातक को बलहीन बनाता हैं शारीरिक समस्याएं देता हैं ऐसा मंगल । मंगल शुक्र की युति हो तो जातक को कामवासना अधिक देता हैं ।ऐसा जातक सुख की नींद नहीं ले सकता सदा बैचेन रहता हैं। गुरु चन्द्रमा की दृष्टि थोड़ी राहत दे सकती हैं लेकिन शनि आदि पाप ग्रहों की दृष्टि युति जातक को बहुत खराब फल देते हैं ऐसे में जातक को शारीरिक बीमारियां कोर्ट कचहरी मुकदमा में अपना समय और बल गंवाना पड़ता हैं।

नोट :- ये मंगल ग्रह के सभी 12 भावों में सामान्य फल हैं । ये आपकी कुंडली अनुसार लागू भी हो सकते हैं और नहीं भी । अक्सर कुंडली में विभिन्न राशियों , नक्षत्रों , नवमांश और ग्रह दशा के अनुसार फलों में बदलाव आता ही हैं। नित्य प्रतिदिन व्यायाम करना और अपने शरीर को तंदुरुस्त रखना ही मंगल को अच्छा बनाता हैं यह ही अच्छे मंगल की निशानी हैं।

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