कुंडली के 12 भावों से जीवन का विश्लेषण

“क्या आप जानते हैं कि कुंडली के 12 भाव आपके जीवन को कैसे प्रभावित करते हैं? इस ब्लॉग पोस्ट में, हम कुंडली के 12 भावों की विस्तृत जानकारी प्रदान करेंगे और बताएंगे कि कैसे ये भाव आपके जीवन के विभिन्न पहलुओं को प्रभावित करते हैं।”

12 भावों से संबंधित विचार ।
भारतीय ज्योतिष शास्त्रों में बारह राशियों , नव ग्रहों , और सत्ताइस नक्षत्रों का वर्णन किया हैं। जिसमें प्रत्येक राशि 30 अंश, और प्रत्येक नक्षत्र 13अंश 20 कला का होता हैं जिनमें सभी नवग्रह गोचर करते रहते हैं । जिस तरह से बारह राशियां होती हैं उसी तरह कुंडली के 12 घर या भाव भी होतें हैं जिनमेंप्रत्येक भाव 30 अंश का ही होता हैं । जिनमें सभी राशियां क्रमश: लग्न , चंद्र , व आदि कुंडली अनुसार विचरण करती हैं। जिस तरह से पूर्व से उदित राशि का लग्न बनता हैं अर्थात् वह राशि लग्न या प्रथम भाव में विचरण करती हैं । फिर उसके बाद लग्न राशि के बाद अन्य सभी राशियां क्रमशः प्रथम भाव के बाद अन्य भावों में क्रमशः विचरण करती हैं। इसी तरह चन्द्र सूर्य आदि कुंडलियों का भी प्रावधान होता हैं । फिर कोई भी राशि और ग्रह किसी भी भाव में स्थित होकर उस भाव के विशेष फलों को प्रदर्शित करते है। यह कुंडली के 12 भावों के अनुसार ही होता हैं । भारतीय ज्योतिष शास्त्र में इन 12 भावों में हमारे जीवन के विभिन्न क्षेत्रों को बांटा गया हैं । प्रत्येक भाव का अपना एक विशेष महत्व हैं । इन भाव में स्थित होकर ही किसी नक्षत्र , राशि और ग्रहों का फल प्रदर्शित होता है। जिससे व्यक्ति के भूत भविष्य और वर्तमान में होने वाले प्रकरण का अनुमान या पूर्वभूत किया जा सकता हैं । कुंडली में सभी भावों का अपना – विशेष कारकत्व होता हैं ।

आइए जानते हैं कुंडली के 12 भावों में जीवन के महत्वपूर्ण पहलू

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प्रथम भाव –

12 भावों में प्रथम भाव लग्न भाव कहलाता हैं । यह हमारी कुंडली का प्रथम धर्म भाव कहलाता हैं । इस भाव को तनु भाव कहा जाता हैं । इस भाव से हमारे शरीर, रंग, रुप, आकृति, कद- काठी, मस्तिष्क , हमारे व्यक्तित्व को दिखाता हैं । यह भाव हमारी आयु, निद्रा, चिन्ह, प्रतिष्ठा , यश , प्रवास और प्रतिरोधक क्षमता आदि भी इसी भाव से देखा जाता हैं। यह भाव कुंडली का सबसे महत्वपूर्ण भाव कहलाता हैं क्योंकि यह भाव हमारा अपना अर्थात् हमारे शरीर व्यक्तित्व प्रतिष्ठा का भाव होता हैं । यह भाव लग्न और इसके स्वामी को लग्नेश कहता हैं । यह भाव सभी का बली होना ही चाहिए इसका स्वामी भी बली होना चाहिए । पीड़ित नहीं होना चाहिए ताकि हमारा शरीर स्वस्थ रहे और हम निरंतर प्रगति करें । कालपुरुष के अनुसार मेष राशि और मंगल इस भाव का प्रतिनिधित्व करता हैं । और यही भाव केंद्र और त्रिकोण दोनों संज्ञा को प्राप्त करता हैं इसलिए यह महत्वपूर्ण हैं । और सूर्य इस भाव में दिग्बली होता हैं और बुद्ध , गुरु इस भाव के कारक हैं।

द्वितीय भाव:-

12 भावों में द्वितीय भाव कुटुम्ब भाव कहलाता हैं । यह कुंडली का पहला अर्थ त्रिकोण भाव हैं । इस भाव से हमारे कुटुंब, हमारा परिवार , हमारा व्यवहार, हमारी वाणी, रत्न, धन जो एकत्रित हो, हमारे संस्कार , गायन कला और आदि का विचार करते हैं । इस भाव से हम अपने चेहरे का विचार भी करते हैं जिसमें हम अपने नाक, कान, गला, दांत, जीभ, आदि को सम्मिलित करते हैं । एवम् वंश-वृद्धि , ,कुल- परंपरा और रिश्तों का निर्वाह आदि भी इसी भाव से विचारणीय हैं । यह द्वितीय भाव और इसका स्वामी धनेश या द्वितीयेश कहलाता हैं । यह मारक भाव भी कहलाता हैं । यदि यह भाव या स्वामी बली हो जाए तो आपको परिवार संचित धन आदि का आपको साथ मिलता हैं । कालपुरुष के अनुसार इस भाव वो वृषभ राशि और शुक्र प्रतिनिधित्व करते हैं । यह पहला पणफर स्थान हैं । इस भाव के कारक ग्रह गुरु और शुक्र ही हैं।

तृतीय भाव:-

12 भावों मैं तृतीय भाव पराक्रम भाव कहलाता हैं। यह कुंडली का प्रथम काम त्रिकोण का भाव हैं। इस भाव से हमारे पराक्रम, ऊर्जा- स्तर, साहस, दृढ़शक्ति, छोटे भाई – बहन और उनके साथ सम्बन्ध , पड़ोसी , रिश्तेदार, गांव- शहर- मोहल्ले आदि में सम्बन्ध, संचार शैली , लेखन , सम्पादन, आदि का विचार तीसरे भाव से किया जाता हैं । इस भाव से हमारे शरीर के कंधे , हाथ उंगलियां आदि का विचार किया जाता हैं । यह तृतीय भाव और इसके स्वामी को तृतीयेश या पराक्रमेश कहते हैं । यदि ये बली हो जाएं तो आप आप दृढ़शक्ति से युक्त, पराक्रमी, साहसी और भाई बहनों का सुख आदि से युक्त होते हैं । यह प्रथम आपोक्लिम भाव और उपचय भाव कहलाता हैं । कालपुरुष के अनुसार इस भाव का प्रतिनिधित्व मिथुन राशि और बुद्ध के पास हैं । सभी पापी ग्रह लगभग इस भाव में अच्छा फल देते हैं । और आपको साहसी बनाते हैं ।

चतुर्थ भाव:-

12 भावों में चतुर्थ भाव सुख भाव कहलाता हैं । यह भाव कुंडली का प्रथम मोक्ष त्रिकोण भाव हैं । इस भाव से हमारे सुख ,ऐश्वर्य, आराम, आनन्द और प्रसन्न मन, मानसिक स्थिति , घरेलू वातावरण, आदि का विचार इस भाव से किया जाता हैं । इस भाव से अचल संपत्ति, भूमि , भवन , मकान , वाहन आदि का सुख भी इसी भाव से किया जाता हैं । इस भाव से हमारी माता और उनके साथ हमारा ममता युक्त सम्बन्ध और ससुर का विचार भी इसी भाव से किया जाता हैं । इसीभाव से हमारी छाती हृदय आदि का विचार किया जाता हैं । यह चतुर्थ भाव और इसके स्वामी को सुखेश या चतुर्थेश कहते हैं । यदि ये बली हो जाएं तो आपको माता से अच्छे संबंध , ऐश्वर्य आराम, वाहन भूमि मकान और सुख प्राप्त होते हैं । यह द्वितीय केंद्र भाव भी है। कालपुरुष के अनुसार इस भाव का कर्क राशि और चन्द्रमा प्रतिनिधित्व करते हैं । शुक्र इस भाव मैं दिग्बली होता हैं। सभी शुभ ग्रह इस भाव में कारक माने जाते हैं ।

पंचम भाव :-

12 भावों में पंचम भाव ज्ञान भाव कहलाता हैं । यह कुंडली का द्वितीय धर्म त्रिकोण भाव हैं। यह द्वितीय पणफर स्थान हैं। इस भाव से हमारे ज्ञान, शिक्षा , विद्या , विवेक, बुद्धि, शास्त्र ज्ञान, योग्यता, कुशलता , वाकपटुता, आकर्षण ,प्रेम ,प्रेम- संबंध आदि का विचार किया जाता हैं । इसी भाव से अचानक धन लाभ लॉटरी आदि भी देखें जाते हैं । यह भाव हमारी संतान और उनसे सम्बन्ध आदि के बारे मैं बताता हैं । यह भाव हमारे इष्ट मंत्र जाप और पूर्वजन्म के कर्म आदि के बारे में बताता हैं । इसी भाव से हमारे पेट अग्नाशय पिंडा पाचन शक्ती आदि का विचार किया जाता हैं । यह पंचम भाव और इसके स्वामी को पंचमेश या संतानेश या ज्ञानेश कहते हैं । यदि ये बली हो तो हमें विद्या बुद्धि विवेक अच्छी संताने आदि की प्राप्ति होती हैं । यह द्वितीय त्रिकोण भाव भी हैं । कालपुरुष के अनुसार सिंह राशि और सूर्य इस भाव का प्रतिनिधित्व करते हैं । इस भाव में सूर्य बुद्ध गुरु कारक ग्रह माने जाते हैं।

षष्ठ भाव :-

12 भावों में षष्ठ भाव रिपु भाव कहलाता हैं । यह द्वितीय अर्थ त्रिकोण भाव हैं । यह द्वितीय अपेक्लिम स्थान भी हैं । इस भाव से हमारे शत्रु , वैरी, प्रतिस्पर्धी, मनमुटाव, नुकसान, भय, हानि आदि का विचार इस भाव से किया जाता हैं । इसी भाव से रोग, ऋण, चोरी, दुर्व्यवहार आदि का विचार भी किया जाता हैं । इसी भाव से हमारे ननिहाल पक्ष में मामा के साथ संबंधों का विचार भी किया जाता हैं । इसी भाव से प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं के मामले में भी विचार किया जाता हैं । इस भाव से हमारी नाभि उससे निचले हिस्से, कमर , आदि भी विचारणीय हैं । यह षष्ठ भाव और इसके स्वामी को षष्ठेश या रोगेश भी कहते हैं । यह भाव सामान्य बली ही होना चाहिए । ताकि प्रतिस्पर्धी आदि भी हो और रोग ऋण आदि पर भी जीत मिले । यह द्वितीय आपोक्लिम स्थान भी हैं । इसे उपचय भाव और त्रिक भाव भी कहा जाता हैं। कालपुरुष के अनुसार कन्या राशि और बुद्ध इस भाव के प्रतिनिधि हैं । सामान्यतः सभी पापग्रह यहां शुभ फल ही देते हैं और राहु की इस भाव में विशिष्टता प्राप्त होती हैं ।

सप्तम भाव :-

12 भावों में सप्तम भाव कलत्र भाव कहलाता हैं । यह द्वितीय काम त्रिकोण भाव हैं । और यह तृतीय केंद्र भाव हैं । इस भाव से हमारे दाम्पत्य, पति- पत्नी, सांसारिकसुख , काम, विवाह , और पार्टनरशिप आदि का विचार किया जाता हैं । यह भाव हमारे व्यापार और प्रतिदिन के कार्यों और उनसे आय को बताता हैं । हमारी सामाजिक छवि का विचार भी इसी भाव से किया जाता हैं । यह भाव हमें हमारे पति पत्नी के साथ संबंधों को बताता हैं । इसी भाव से यह भी देखा जाता हैं कि समाज हमारे प्रति कैसा दृष्टिकोण रखता हैं । हमारे जननांगों का विचार भी इसी भाव से किया जाता हैं । यह मारक भाव भी कहलाता हैं । यह सप्तम भाव और इसके स्वामी को सप्तमेश या कलत्रेश भी कहते हैं । यदि यह भाव और स्वामी बली हो जाए तो आपका सुन्दर दाम्पत्य जीवन जीवनसाथी और धनागमन आदि प्राप्त होते हैं । कालपुरुष के अनुसार तुला राशि और शुक्र इस भाव का प्रतिनिधित्व करते हैं । शनि को इस भाव में दिग्बल प्राप्त होता हैं । सामान्यतः शुक्र शनि ग्रह और गुरु की दृष्टि इस भाव के लिए अच्छी मानी जाती हैं ।

अष्टम भाव :-

12 भावों में अष्टम भाव मृत्यु भाव कहलाता हैं । यह द्वितीय मोक्षत्रिकोण भाव हैं । यह तृतीय पणफर भाव भी हैं । यह अत्यंत गुप्त भाव हैं इस भाव से जीवन- मृत्यु ,आयु , रहस्य, गुप्त विद्या , गुप्त रोग , कामवासना आदि का विचार इस भाव से किया जाता हैं । यह भाव हमारे लिए परेशानी और षड्यंत्र का कारक भी हैं । इसी भाव से ससुराल के साथ संबंधों और अचानक धन लाभ इत्यादि भी देखा जाता हैं । इस भाव से हमारे गुप्तांगों का विचार भी किया जाता हैं । यह अष्टम भाव और इसके स्वामी को अष्टमेश कहते हैं यह भाव अत्यधिक बली नहीं होना चाहिए क्योंकि यह जीवन में परेशानी भी ला सकता हैं । यह त्रिक भावों में भी आता हैं । कालपुरुष के अनुसार इस भाव में वृश्चिक राशि और मंगल का प्रतिनिधित्व हैं । शनि को इस भाव में विशिष्ट माना जाता हैं । सामान्यतः केतु और शनि इस भाव में अच्छा फल करते हैं ।

नवम भाव :-

12 भावों में नवम भाव भाग्य भाव कहलाता हैं । यह तृतीय धर्म त्रिकोण भाव हैं । यह तृतीय आपोक्लिम भाव हैं । यह हमारे धर्म का भाव हैं। इस भाव से धर्म, भाग्य , तीर्थयात्रा, प्रारब्ध, यश, धार्मिक ज्ञान, उच्च शिक्षा , प्रगति आदि का विचार इस भाव से किया जाता हैं । यह भाव हमारे लिए अत्यंत शुभ भाव होता हैं । इसी भाव से हमें अच्छे धार्मिक गुरु की प्राप्ति होती हैं । इसी भाव से हमारी टांगों का विचार भी किया जाता हैं । यह भाव हमारे पिता और उनके साथ संबंधों का भी होता होता है। इससे हमारे शरीर के गुप्तांगों के नीचे जांघों का विचार भी किया जाता हैं । यह नवम भाव और इसके स्वामी को नवमेश या भाग्येश कहते हैं । यह भाव और इसका स्वामी सदैव बली ही होने चाहिए । क्योंकि यह भाव हमें भाग्य और पिता का साथ प्रदान करता हैं तब हम प्रगति की तरफ़ अग्रशील हो । कालपुरुष के अनुसार धनु राशि और गुरु इस भाव के प्रतिनिधि हैं । सूर्य गुरु इस भाव के कारक माने जातें हैं ।

दशम भाव :-

12 भावों में दशम भाव कर्म भाव कहलाता हैं । यह तृतीय अर्थ त्रिकोण भाव हैं । यह अंतिम केंद्र स्थान भी हैं। इस भाव से हमारे कर्मों का विचार मुख्यत: किया जाता हैं । इस भाव से हमारे कार्यक्षेत्र, कारोबार, पद – प्रतिष्ठा, व्यवसाय, राजनीति , राज्य , मान- सम्मान , स्टेटस, आज्ञा आदि का विचार इस भाव से किया जाता हैं। यह भाव हमारे अधिकार और प्रतिष्ठा को बताता हैं । यह भाव हमारे अनुयायियों और बड़ों के साथ सम्बन्ध को बताता हैं । यह भाव हमें पिता का सुख और उनके धन का सुख भी बताता हैं। इस भाव से हमारे शरीर के घुटनों का विचार भी किया जाता हैं । यह दशम भाव और इसके स्वामी को दशमेश या कर्मेश भी कहते हैं । यह भाव भी हमारी कुंडली में बली होना आवश्यक हैं । क्योंकि यह हमारे कर्मों अधिकारों और प्रतिष्ठा को प्रदर्शित करता है। ताकि हम कार्यक्षेत्र में अच्छे कर्म करके आगे बढ़े और अधिकार , प्रतिष्ठा को प्राप्त हो । कालपुरुष के अनुसार मकर राशि और शनि इस भाव के प्रतिनिधि हैं । सूर्य और मंगल को इस भाव में दिग्बल प्राप्त होता हैं । यह उपचय भाव भी हैं । सामान्यतः सूर्य शनि मंगल और राहु इस भाव में अच्छा ही फल प्रदान करते हैं ।

एकादश भाव :-

12 भावों में एकादश भाव लाभ भाव कहलाता हैं । यह तृतीय काम त्रिकोण भाव हैं । यह अंतिम पणफर स्थान हैं । इस भाव से हमें लाभ, आय , आगमन , राजकार्य, बड़े मित्र , समाज में श्रेष्ठता , द्रव्य लाभ , लालच ,आदि का विचार इस भाव से किया जाता हैं । यह हमें विभिन्न क्षेत्रों से लाभ की प्राप्ति को बताता हैं । यह भाव हमें बड़े अधिकारी मित्रों को बताता हैं । इसी भाव से हम अपने बड़े भाई- बहनों और ज्येष्ठ पिता आदि के साथ सम्बन्धों का विचार करते हैं । यह भाव हमारी आकांक्षाओं – इच्छा पूर्ति का भाव भी होता हैं । इस भाव से हमारी टांगों का विचार किया जाता हैं। यह एकादश भाव और इसके स्वामी को लाभेश या आयेश कहते हैं । यदि यह भाव बली हो तो अच्छी आय और लाभ को प्रदर्शित करता हैं। कालपुरुष के अनुसार कुंभ राशि और शनि इस भाव का प्रतिनिधित्व करते हैं । यह भाव उपचय भाव भी हैं । सूर्य इस भाव में अत्यंत विशिष्टकारी होता हैं । यही केवल एक ऐसा भाव हैं जिसमें सामान्यतः सभी के सभी ग्रह लगभग शुभ फल ही देते हैं।

द्वादश भाव :-

12 भावों में अंतिम द्वादश भाव व्यय भाव कहलाता हैं । यह तृतीय मोक्ष स्थान हैं और अंतिम आपोक्लिम स्थान हैं । यह भाव हानि भाव भी कहलाता हैं । इस भाव से व्यय , खर्चे , हानि , निद्रा , अंधेरा , अस्पताल , दुराचार , शत्रु द्वारा हानि आदि विचारणीय हैं । इसी भाव से दान , मोक्ष और आध्यात्मिक मुक्ति और त्याग का विचार भी किया जाता हैं । इसी भाव से स्थानान्तरण, विदेश गमन और बड़ी यात्राओं का विचार भी किया जाता हैं । इसी भाव से हमारे पैरों और पैरों की अंगुलियों का विचार किया जाता हैं । यह द्वादश भाव और इसके स्वामी को द्वादशेष ये व्ययेश भी कहते हैं । यह भाव और स्वामी अधिक बली नहीं होना चाहिए । क्योंकि यह हानि और व्यय आदि का कारक हैं । कालपुरुष के अनुसार मीन राशि और गुरु इस भाव के प्रतिनिधि हैं । यह भाव त्रिक भाव भी हैं । सामान्य रुप से केतु इस भाव में त्याग के लिए अच्छे माने जाते हैं । सामान्यतः गुरु शुक्र इस भाव के कारक माने जाते हैं ।

नोट:- ये 12 भावों से सामान्य विचार किए जाते हैं । जिनकी प्राप्ति इन भाव भावों में अनुकूल बैठे ग्रहों की स्थिति बताती हैं । वैसे तो गहराई से इन 12 भावों में बहुत अधिक अध्ययन किया जा सकता हैं परन्तु वर्तमान परिवेश के जग-जीवन में सामान्यतः इन कारकों को देखा ही जाता हैं ।

1. क्या है ज्योतिष का महत्व?

उत्तर: ज्योतिष एक प्राचीन विज्ञान है जो व्यक्ति के जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझने में मदद करता है।

2. क्या है 12 राशियों का प्रभाव?

उत्तर: 12 राशियों का प्रभाव व्यक्ति के जीवन के विभिन्न पहलुओं पर पड़ता है, जैसे कि स्वास्थ्य, संबंध, करियर, और अधिक।

3. क्या है कुंडली का महत्व?

उत्तर: कुंडली ज्योतिष में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, जो व्यक्ति के जीवन के विभिन्न पहलुओं को दर्शाती है।

4. क्या हैं 12 भाव?

उत्तर: 12 भाव हैं – लग्न, धन, सहज, सुख, कर्म, आरोग्य, संबंध, मृत्यु, धर्म, लाभ, और व्यय।

5. प्रथम भाव क्या है?

उत्तर: प्रथम भाव लग्न भाव कहलाता है, जो हमारे शरीर, रंग, रूप, आकृति, कद-काठी, मस्तिष्क, हमारे व्यक्तित्व को दिखाता है।

6. द्वितीय भाव क्या है?

उत्तर: द्वितीय भाव कुटुम्ब भाव कहलाता है, जो हमारे कुटुंब, हमारा परिवार, हमारा व्यवहार, हमारी वाणी, रत्न, धन जो एकत्रित हो, हमारे संस्कार, गायन कला और आदि का विचार करते हैं।

7. तृतीय भाव क्या है?

उत्तर: तृतीय भाव पराक्रम भाव कहलाता है, जो हमारे पराक्रम, ऊर्जा-स्तर, साहस, दृढ़शक्ति, छोटे भाई-बहन और उनके साथ संबंध, पड़ोसी, रिश्तेदार, गांव-शहर-मोहल्ले आदि में संबंध, संचार शैली, लेखन, संपादन, आदि का विचार करते हैं।

8. चतुर्थ भाव क्या है?

उत्तर: चतुर्थ भाव सुख भाव कहलाता है, जो हमारे सुख, ऐश्वर्य, आराम, आनंद और प्रसन्न मन, मानसिक स्थिति, घरेलू वातावरण, आदि का विचार करते हैं।

9. पंचम भाव क्या है?

उत्तर: पंचम भाव ज्ञान भाव कहलाता है, जो हमारे ज्ञान, शिक्षा, विद्या, विवेक, बुद्धि, शास्त्र ज्ञान, योग्यता, कुशलता, वाकपटुता, आकर्षण, प्रेम, प्रेम-संबंध आदि का विचार करते हैं।

10. षष्ठ भाव क्या है?

उत्तर: षष्ठ भाव रिपु भाव कहलाता है, जो हमारे शत्रु, वैरी, प्रतिस्पर्धी, मनमुटाव, नुकसान, भय, हानि आदि का विचार करते हैं।

11. सप्तम भाव क्या है?

उत्तर: सप्तम भाव कलत्र भाव कहलाता है, जो हमारे दाम्पत्य, पति-पत्नी, सांसारिक सुख, काम, विवाह, और पार्टनरशिप आदि का विचार करते हैं।

12. अष्टम भाव क्या है?

उत्तर: अष्टम भाव मृत्यु भाव कहलाता है, जो हमारी आयु, रहस्य, गुप्त विद्या, गुप्त रोग, कामवासना आदि का विचार करते हैं।

13. नवम भाव क्या है?

उत्तर: नवम भाव भाग्य भाव कहलाता है, जो हमारे धर्म, भाग्य, तीर्थयात्रा, प्रारब्ध, यश, धार्मिक ज्ञान, उच्च शिक्षा, प्रगति आदि का विचार करते हैं।

14. दशम भाव क्या है?

उत्तर: दशम भाव व्यक्ति के जीवन में करियर और पेशेवर जीवन को दर्शाता है। यह भाव व्यक्ति के जीवन में सफलता, प्रशंसा, और सम्मान को भी दर्शाता है।

15. एकादश भाव क्या है?

उत्तर: एकादश भाव व्यक्ति के जीवन में लाभ, आय, और सामाजिक प्रतिष्ठा को दर्शाता है। यह भाव व्यक्ति के जीवन में आर्थिक लाभ, सामाजिक प्रतिष्ठा, और मित्रता को भी दर्शाता है।

16. द्वादश भाव क्या है?

उत्तर: द्वादश भाव व्यक्ति के जीवन में व्यय, खर्च, और अपशुक्ति को दर्शाता है। यह भाव व्यक्ति के जीवन में व्यक्तिगत समस्याएं, स्वास्थ्य समस्याएं, और आध्यात्मिक समस्याएं को भी दर्शाता है।

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